शुक्रवार 10 अक्तूबर 2025 - 14:09
क़ुरआन के अनुसार अल्लाह अपने बंदों को वहम और गुमान के अंधेरों से निकाल कर 'हयात ए यक़ीनी अता करता है

हौज़ा / मौलाना मंज़ूर अली नक़वी अमरोहवी ने हरम ए मोतह्हर हज़रत मासूमा सल्लल्लाहो अलैहा क़ुम के अबू तालिब हॉल में आयोजित इसाल ए सवाब की मजलिस को संबोधित करते हुए कहा कि क़ुरआन के अनुसार अल्लाह अपने बंदों को वहम और गुमान के अंधेरों से निकाल कर 'हयात-ए-यक़ीनी' प्रदान करता है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , मौलाना मंज़ूर अली नक़वी अमरोहवी ने सूरह अलहदीद की आयत नंबर 9
هُوَ الَّذِي يُنَزِّلُ عَلَىٰ عَبْدِهِ آيَاتٍ بَيِّنَاتٍ لِيُخْرِجَكُم مِّنَ الظُّلُمَاتِ إِلَى النُّورِ ۚ وَإِنَّ اللَّهَ بِكُمْ لَرَءُوفٌ رَّحِيمٌ
वही है जो अपने बंदे पर स्पष्ट आयतें अवतरित करता है, ताकि तुम्हें अंधेरों से निकाल कर प्रकाश की ओर ले जाए और निस्संदेह अल्लाह तुम पर अत्यंत दयालु और कृपाशील है।के प्रकाश में कहा कि यह आयत वास्तव में मानव आत्मा की जागृति और परिवर्तन की घोषणा है।

मौलाना मंज़ूर अली नक़वी ने कहा कि यह आयत हमें बताती है कि अल्लाह तआला अपने बंदे को "ज़ुलुमात" यानी वहम, शक, गुमान और ग़फ़लत  के अंधेरों से निकाल कर "नूर-ए-यक़ीन" की रोशनी प्रदान करता है यही वह स्थिति है जिसे कहा जा सकता है कि "खुदावंद-ए-मुतआल वहम व गुमान की ज़िंदगी से निकाल कर हयात-ए-यक़ीनी प्रदान करता है।

उन्होंने कहा कि जब इंसान सिर्फ बाहरी आँखों से देखता है तो उसे दुनिया के धोखे, वहम और फरेब नज़र आते हैं, लेकिन जब अल्लाह तआला उस पर अपनी रहमत का दरवाज़ा खोलता है तो उसके दिल की आँख रोशन हो जाती है। फिर वह देखने लगता है कि हर चीज़ के पीछे एक कामिल सत्ता काम कर रही है।

मौलाना मंज़ूर अली नक़वी ने आगे कहा कि यही वह पल होता है जहाँ वहम खत्म होता है यक़ीन जन्म लेता है और बंदे की ज़िंदगी "हयात-ए-यक़ीनी" में बदल जाती है। क़ुरआन कहता है कि अल्लाह ने "आयात-ए-बय्यिनात" अवतरित कीं, यानी ऐसी स्पष्ट निशानियों वाली आयतें जो इंसान को हकीकत दिखा दें शक को यक़ीन में और अंधेरे को रोशनी में बदल दें।

उन्होंने कहा कि दुनिया वास्तव में दो समूहों में बंटी हुई है एक वे लोग जो गुमान की छाया में जीते हैं और दूसरे वे जो यक़ीन की रोशनी में जीवन गुज़ारते हैं। पहले समूह के लोग हमेशा वहम और बेचैनी में रहते हैं क्या होगा? क्यों हुआ? मेरे साथ ही क्यों?लेकिन दूसरा समूह, यानी अहल-ए-यक़ीन अल्लाह पर भरोसा करते हैं और हर हाल में मुतमइन रहते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि जो कुछ अल्लाह करता है, बेहतर करता है।

मौलाना मंज़ूर अली नक़वी ने पैग़म्बरों के जीवन को उदाहरण देते हुए कहा कि हज़रत इब्राहीम (अ.स.), हज़रत मूसा (अ.स.), हज़रत यूसुफ (अ.स॰) ये सभी अहल-ए-यक़ीन थे। उनकी ज़िंदगियाँ हमें बताती हैं कि जब दिल अल्लाह से जुड़ जाए तो कोई आग जला नहीं सकती, कोई कैद तोड़ नहीं सकती और कोई दरिया रास्ता रोक नहीं सकता।

उन्होंने कहा कि यही नूर ए ईमान यही हयात-ए-यक़ीनी और यही रूहानी बेदारी है जिसकी ओर सूरत अल-हदीद की यह आयत हमें बुलाती है।

मौलाना नक़वी ने आगे कहा कि अगर हम चाहते हैं कि हमारे दिलों में भी इत्मिनान पैदा हो तो हमें क़ुरआन के ज़रिए अपनी रूह को मुनव्वर करना होगा।

तिलावत ए क़ुरआन (क़ुरआन पढ़ना) वास्तव में रूह की बेदारी का सफर है जब बंदा क़ुरआन के पैग़ाम से जुड़ता है तो अल्लाह खुद उसे वहम और गुमान के अंधेरों से निकाल कर नूर-ए-यक़ीन की ज़िंदगी प्रदान करता है।

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